रास्तों के बवंडर

रास्तों के बवंडर कुछ इस तरह उछल गए
जिनकी जद मे आकर काफिले कुचल गए

बुतों की नक्काशियां भी छुपा न सकी उन्हें
बेहरूपिये रूप मे कुछ देर रहे,फिर ढल गए

उन्हीं की आमद से हरम की राते बदल गईं
उन्ही की आमद से हरम के दिन बदल गए

तुझे देखकर यादों की कुछ ऐसी हुड़क उठी
बेदम आंखों मे जैसे कि जुगनूं से जल गए

हो अहसान अगर समंदर लबों पे आन पड़े
बहुत प्यासे लोग हैं कतरा भर से मचल गए


तारीख: 05.02.2024                                    मारूफ आलम









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