चांद मुझ पर झल्ला गया

चांद मुझ  पर झल्ला गया
साथ छत पे मैं जो आ गया ।
वो ज़ुल्फें क्या सहेज दी मैनें
बादलों  को गुस्सा आ गया ।
शाम मुहँ फुलाकर  बैठी है
उनसे मिलकर जो आगया ।
तारे तिलमिला कर रह गए
मेरे  चेह्रे पे नूर जो आ गया ।
फूल भी  सारे फफक  पड़े
काटों  को जब मैं  भा गया ।
महफिल मुश्किल में आगई
अजय तू  जब भी छा गया ।


तारीख: 07.02.2024                                    अजय प्रसाद









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