रौनक मेरी महफिलों की कोई और ले गया
वो शानो-शौकत,वो फिज़ा, वो दौर ले गया ।
ढलते ही उम्र वो चमक झुर्रियों में बदल गई
मेरे चेह्रे पे टिकती निगाहों का गौर ले गया ।
बागों में टहलना,वो बारिशों में भींगना,भींगाना
वो शाम,वो नदी का किनारा,वो ठौर ले गया ।
तक़नीक और तरक्की तो अमीरों को भा गई
गरीबों की तो रोज़ी,औ खाने का कौर ले गया ।
नाज़ जमाने के उठाते फिरते थे हम शौक़ से
जो कभी सजते थे सर पे वो सिरमौर ले गया