शिकवा गिला

शिकवा गिला मिटाने का त्योहार आ गया।
दुश्मन भी होलि खेलने  को यार आ गया।।

परदेसी  सारे  आ  गए  परदेस  से  यहाँ।
अपना भी मुझको रंगने मेरे द्वार आ गया।।

रंग्गे गुलाल  उड़  रहा  था  चारों  ओर  से।
नफ़रत मिटा के देखा तो बस प्यार आ गया।।

ठंडाइ भांग की मिलि हमनें जो पी लिया।
बैठा था घर में चैन  से  बाज़ार आ गया।।

मजनू पड़े हैं  पीछे  मुझे  रंगने  के  लिए।
धोखा हुआ पहन के जो सलवार आ गया।।

सब लोग मिल रहे गले  इक दूजे से यहाँ।
लगता है मुरली वाले के दरबार आ गया।।

खेलो निज़ाम रंग  भुला कर के सारे ग़म।
सबको गले लगाने  ये  दिलदार आ गया।।
 


तारीख: 06.02.2024                                    निज़ाम- फतेहपुरी









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