क्यों उल्टा पड़ता पाँसा है।
अक्सर ही मिलता झाँसा है।।
अपनी बातों पर अडिग नहीं,
वो पल में तोला माशा है।
उसकी बातों पर रंज न कर,
अच्छा होगा यह आशा है।
क्या मरुथल की प्यास बुझेगी,
सावन तो खुद ही प्यासा है।
सुलह-वुलह की उम्मीद न कर,
वे करते खड़ा तमाशा है।
प्रयास हैं सारे विफल हुए,
जीवन में हुई हताशा है।
आस्तीन के साँप हुए और,
फूहड़ता बनी शनासा है।