उल्टा पड़ता पाँसा

क्यों उल्टा पड़ता पाँसा है।
अक्सर ही मिलता झाँसा है।।

अपनी बातों पर अडिग नहीं,
वो  पल  में  तोला  माशा है।

उसकी बातों पर रंज न कर,
अच्छा  होगा  यह  आशा है।

क्या मरुथल की प्यास बुझेगी,
सावन  तो  खुद  ही  प्यासा है।

सुलह-वुलह की उम्मीद न कर,
वे  करते  खड़ा  तमाशा  है।

प्रयास  हैं  सारे  विफल  हुए,
जीवन  में  हुई  हताशा  है।

आस्तीन के साँप हुए और,
फूहड़ता  बनी  शनासा  है।


तारीख: 20.02.2024                                    अविनाश ब्यौहार









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