जो आग सीने में है ,जहाँ में लगाते क्यूँ नहीं

जो आग सीने में है ,जहाँ में लगाते क्यूँ नहीं
कुछ कर सकते नहीं तो, मर जाते क्यूँ नहीं

बहुत शोर किया करते हैं जुल्मों-सितम का
ज़िन्दा आप भी है,  कुछ कर जाते क्यूँ नहीं  

दरिया बन कर बहते रहे हैं खुले मैदानों में
हिम्मत  से समन्दर  में उतर जाते क्यूँ नहीं

किसे क्या हासिल हुआ है आँखें भिगोने से  
गर आँसू हैं तो शूल सा गर* जाते क्यूँ नहीं

मौत रोज़ नए चेहरे लेकर डराती ही रहेगी
आप भी रोज़ मरने से मुकर जाते क्यूँ नहीं

गर*-धँस जाना  


तारीख: 16.11.2019                                                        सलिल सरोज






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