या रब

या रब कुछ तो आसान कर
दुनिया गमों से सुनसान कर ।
ज़िंदगीयाँ हैं जिनकी बेरहम
उनको अपना मेहमान कर ।
रोने को अब आसूँ भी नहीं
आंखों पर भी एहसान कर ।
मेरी तो कोई सुनता ही नहीं
ज़ारी तू अच्छी फरमान कर ।
जैसे अता की है खुबसूरती
खुबसूरत और ये जहान कर ।
थक चुके हैं लोग इवादत से
कुछ तो इधर भी ध्यान कर ।
कब तलक रहेगा यही चलन
अब तो धरती आसमान कर ।


तारीख: 20.02.2024                                    अजय प्रसाद









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