ये दुनिया हमें रास आई नहीं

SHAYARI GAZAL sahitya manjari

ये दुनिया हमें रास आई नहीं, चलो आसमाँ में चले
जहाँ झूठ, फरेब, मक्करी न हो, उसी जहाँ में चले

न ताज़ी हवा आती है, न खुली धूप इमारतों में
नींद अब भी अच्छी आएगी, मिट्टी के मकाँ में चले

बैठ के किनारों पे कुछ भी हासिल नहीं होता
थोड़ी हिम्मत कर के इक दफे, जिद्दी तूफाँ में चले

बहुत शोर है धर्म, जाति, बिरादरी का इस तरह
अमन की मुकम्मल तलाश में किसी बयाबाँ में चले

तो क्या हुआ कि ज़माने को हमारी कद्र नहीं
किसी के कर्ज़दार थोड़े हैं, हम अपनी गुमाँ में चले

हमारी तबियत ही है कुछ ऐसी, अब क्या करें
महफिल बुरा कहे तो कहे, हम सच की ज़ुबाँ में चले


तारीख: 02.01.2024                                    सलिल सरोज









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