मैं तृतीय श्रेणी अध्यापिका के पद पर कार्यरत थी। लेकिन किसी कारणवश राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में प्रतिनियुक्ति करवाई।
मैं जब वहां गई तो वह विद्यालय दसवीं कक्षा तक ही था । लेकिन कुछ समय पश्चात वह विद्यालय 12वीं तक क्रमोन्नत हो गया। उस गांव की अधिकतर बालिकाएं अपना अध्ययन बीच में छोड़कर घर बैठ गई थी ।
लेकिन जब मुझे पता चला की बालिकाएं अपना आगे का अध्ययन नहीं कर रही है तो मैंने स्वयं ने उन बालिकाओं के अभिभावकों से संपर्क करने का निर्णय लिया ।
मैं प्रत्येक के घर जाकर उनके माता-पिता से मिली तो मुझे पता चला कि उनमें अपनी बच्चियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी को लेकर चिंता थी। मैंने उनको विश्वास दिलाया कि मैं किसी भी प्रकार की कोई समस्या नहीं आने दूंगी और हर संभव प्रयास करूंगी कि जैसा आप चाहते हैं वैसा ही हो ।
लेकिन उनकी दूसरी चिंता यह थी कि हमारे पास बालिकाओं को पढ़ने के लिए संसाधनों का अभाव है, मैंने उनको सभी प्रकार की योजनाओं से परिचित करवाया और उसके पश्चात भी यह विश्वास दिलाया कि मैं बच्चियों को संसाधन स्वयं दिलवाऊंगी आप सिर्फ विद्यालय भेजिए ।
अभिभावकों ने मुझ पर विश्वास किया और बालिकाएं विद्यालय आने लगी । मैंने देखा कि उन बालिकाओं को विद्यालय की किसी भी प्रकार के नियमों की जानकारी नहीं थी । मैंने सभी नियम उनको बताए, अनुशासन में किस तरह रहा जाता है, यह समझाया ।
उनको यह नहीं पता था की शिक्षा से हम क्या-क्या कर सकते हैं ? उन बालिकाओं को प्रत्येक प्रकार के तथ्य मैंने समझाए और शिक्षा से जीवन में क्या-क्या हो सकता है ? वह सभी बातें मैंने उनको बताई । तो वहां लडकियां घर जाकर अपने अभिभावकों से इस बारे में बताने लगी की शिक्षा से हमें क्या क्या हासिल हो सकता है ? मैं महीने में दो बार बालिकाओं के अभिभावकों की मीटिंग भी लेती थी और उनसे प्रत्येक बालिका के बारे में चर्चा करती थी।
बताती थी कि किस तरह से आज प्रत्येक क्षेत्र में बालिकाएं आगे बढ़ रही है।
उन्होंने मेरी बात को गौर से सुना और अपनी बालिकाओं को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित हुए ।
बालिकाएं प्रत्येक प्रकार की बातों को मुझसे शेयर करती थी और मैं उनकी सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान करती थी ।
जो बातें वह अपनी मां से भी नहीं कह पाती थी वह मेरे साथ कहती थी एक दिन क्या हुआ कि एक बालिका मेरे पास आई ।
उसने कहा कि मेरे माता-पिता मुझे आगे का अध्ययन नहीं करवाना चाहते, आप मेरे माता-पिता को समझाइए, मैं वहां गई और उसके अभिभावकों से बात की, तो वे मान गए और अपनी बच्ची को उच्च शिक्षा के लिए महाविद्यालय में प्रवेश दिलवाया ।
मैं विद्यालय में सिर्फ शैक्षणिक ही नहीं बल्कि प्रत्येक प्रकार की गतिविधि के लिए अर्थात उनके सर्वांगीण विकास के लिए बच्चियों को तैयार करती थी । आज बहुत सी बालिकाएं सरकारी सेवा में है । उस गाँव की बालिकाएं कभी मंच पर आकर नहीं बोल सकती थी, मैंने उनकी झिझक दूर की |
अंत तक आते आते ऐसी स्थिति हो गई, लड़कियां मंच पर बोलने में लड़कों का भी नंबर नहीं आने देती थी विद्यालय की प्रत्येक गतिविधि में बढ़ चढ़ कर भाग लेती थी | मुझे भी गर्व की अनुभूति होती थी
एक बार विद्यालय समय होने से पहले ही, एक बालिका विद्यालय पहुंच गई उसको बहुत बड़ी गलतफहमी हो गई थी। उसको किसी लड़के ने बहला फुसला लिया था। वह उसके साथ जाने को तैयार हो गई । जैसे ही वह प्रवेश द्वार से बाहर आई |
विद्यालय के नजदीक ही किसी अन्य बालिका का घर था, उसने देख लिया। उसका नाम सरोज था, उसके पास मेरे मोबाइल न. थे । क्योंकि मैंने विद्यालय की प्रत्येक बालिका को मेरे नंबर नोट करवा रखे थे। सरोज ने मुझे फोन किया।
और बताया कि मैम अपने विद्यालय की कोई बालिका किसी अन्य लड़के के साथ कहीं और जा रही है| मैं हाथों हाथ घर से रवाना हुई, मुझे किंचित भी अहसास नहीं था कि ऐसा हो सकता है |
मैं जल्दी ही विद्यालय पहुंची। वह बालिका थोडी आगे जा चुकी थी। मैंने उसके घर वालों से संपर्क किया । मैं स्वयं भी उनके साथ गई तो बालिका हमें उस लड़के के साथ जाती हुई मिली | लड़का उसे बहला फुसला रहा था | फिर हमने उनको पकड़ा | उनको समझाया व लड़के को पुलिस के हवाले किया, बालिका को भी भूल का अहसास हुआ। उसके पूरे परिवार ने मुझे धन्यवाद दिया | क्योंकि एक बड़ी अनहोनी घटित होने से रह गई थी। सभी ने कहा- सुबह का भूला शाम को घर आ जाये उसे भूला नहीं कहते ।
सभी ने मुझे धन्यवाद दिया | सभी अभिभावक और बच्चियां मुझसे खुश थे। उन बच्चियों को देखकर मुझे भी ऐसा लगा कि आगे कॉलेज प्रोफेसर के लिए तैयारी करनी चाहिए।
बालिकाओं की शुभकामनाएं, अभिभावकों की शुभकामनाएं, सभी मेरे साथ थी । मैंने प्रोफेसर पद के लिए तैयारी की तो मेरा चयन सभी के आशीर्वाद से उस परीक्षा में हो गया ।
अब जैसे ही अभिभावकों को पता चला, बालिकओं को पता चला तो सभी बुरी तरह रोने लगे कि अब हमारी बालिकाओं का क्या होगा?लेकिन मैंने उनको विश्वास दिलाया कि मैं आपकी बालिकाओं के किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं रहने दूंगी ।
चाहे मैं कहीं भी रहू । मैं उनके संसाधनों की कहीं से भी मदद कर सकती हूं ।
मैंने प्रोफेसर पद पर कार्यग्रहण कर लिया लेकिन उसके पश्चात भी मेरे पास बालिकाओं के रोज विचार विमर्श के लिए फोन आते हैं।
बालिकाएं जुड़ी रहती हैं और अभिभावक भी मुझसे आज भी जुड़े हुए हैं। उस गाँव की अधिकतर बालिकाएं आज सरकारी सेवा में है | जैसे मैने विद्यालय में बालिकाओं को आगे बढ़ाने का प्रयास किया और उसमें सफल भी हुई | यह मैं महाविद्यालय में भी अपनाना चाहती हूं। ऐसा ही करने का भरसक प्रयास करूंगी की बालिकाओं को हम महाविद्यालय से जोड़े ।
क्योंकि शायद जो हम दृढप्रतिज्ञ होकर करते है वो कर जाते है | बालिकाओं को शिक्षा से जोड़ने का,अन्य सभी गतिविधियों में भाग लेने का मेरा प्रयास रहता है और उसमें सफल भी होती हूँ | महाविद्यालय में भी मैं इसके लिए मैं प्रयासरत हूं ।
- बबिता कुमावत
सहायक प्रोफेसर
राजकीय महाविद्यालय
नीमकाथाना,सीकर