एक लड़की भीगी भागी सी

आप सोच रहे होंगे ये तो एक गीत के बोल है। है तो ये गीत के बोल ही, पर मेरी एक छोटी सी लव स्टोरी भी जुडी है इसके साथ। बात तब शुरू होती है, जब मैं मुंबई में रहता था। मैं रोज 422 नंबर बस अपने ऑफिस जाता था जो की 'अँधेरी ' में था। चूँकि सफर लम्बा था और मैं अकेला, इसलिए अक्सर गाने सुनता हुआ , सोता हुआ ही जाता । बस भी खाली होती थी तो मुझे अपनी favorite पीछे कोने वाली सीट मिल ही जाती थी। एक दिन की बात है , 'रिम झिम गिरे सावन, सुलग सुलग .....' गाना बंद हुआ और मेरी नींद खुली, तो देखा कि बस 'गांधी नगर' पहुंची है। 

बहुत तेज बारिश हो रही है, इतनी तेज के कि बस की खिड़की से बाहर कुछ दिख भी नहीं रहा है। बस का automatic door बंद हुआ तो देखा कि एक आधी भीगी हुई सी लड़की, बड़ी हड़बड़ी में अपना बड़ा सा बैग , pink छाता और लम्बे खुले बाल संभालती हुई, बस में अंदर की और आ रही है। 

वो उसी हड़बड़ी में पास वाले अंकल को छाते के बट से मारती हुई, खाली पड़ी हुई सीट (जिसकी साइड बस की दिशा के अपोजिट थी) पे बैठ गयी। बैठते से ही बोली 'sorry'। अंकल ने भी माफ़ी देते हुए अपना सर हिला दिया।

जब उसने बैग और छाता संभाल कर रख दिया और सीधी हुई, तब मेरी नज़र उसके चेहरे पे गयी। गहरी कत्थई आँखे, लम्बी तीखी नाक और सुर्ख लाल होंठ। सफ़ेद कलर का सलवार सूट पहना था उसने। मन ही मन कुछ बोल रही थी या कोई गाना गुनगुना रही थी ? मालूम नहीं मुझे। मैं एक टक उसे देख रहा था और वो बाहर। मैं काफी समय तक उसे यूहीं देखता रहा। वो अचानक से उठी और गेट की तरफ चल दी। बस रुकी , वो उतरी। बस स्टॉप पे लिखा था 'हीरानंदानी पवई'। बस चली, मेने पीछे मुड़के देखा, वो नज़रों से दूर हुई, मन में गाना कौंधा 'चेहरा है या चाँद खिला है, ज़ुल्फ़ घनेरी शाम है क्या, सागर जैसी आँखों वाली ये तो बता तेरा नाम है क्या'।

मेरा भी स्टॉप आया, मैं उतरा। वही ऑफिस था, वही collegues पर मैं वही न था। 'चेहरा है या चाँद....' बार बार मेरे मन में बज रहा था जो की दिन भर बजता रहा और रात में भी। अगले दिन फिर सुबह हुई , फिर मैंने वही बस पकड़ी, इसी उम्मीद के साथ के 'आज फिर उनसे मुलाकात और आमने सामने बात होगी , फिर होगा क्या , क्या पता , क्या खबर'। 

आज बस रोज की तरह नही चल रही थी। इतनी स्लो थी मानो बस नहीं घोड़ा गाड़ी हो। धीमे धीमे धीमे आखिरकार गांधी नगर आ ही गया। पर वो नहीं आई। वो मेरा आखिरी दिन था , मुंबई में। मेरा ट्रांसफर यहाँ के लिए हो चूका था। मुझे अगले ही दिन निकलना था तो ये आखरी मौका था उससे मिलने का बात करने का, जो की मुझे नहीं मिला। अब मैं यहाँ हूँ और वो न जाने कौन है, न जाने कहा है। बस दिल में वही गाना है, 'सागर जैसी आँखों वाली ये तो बता तेरा नाम है क्या'। ये ही थी मेरी छोटी सी, अधूरी सी लव स्टोरी।               


तारीख: 10.06.2017                                    अर्पित गुप्ता 









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