सफलता, सुंदरता की मोहताज नहीं होती

कहानी : सफलता, सुंदरता की मोहताज नहीं होती 

 

"मर गई के?" सुमन की सास जोर से चिल्लाते हुए बोली| वह हॉल में बैठी चाय की चुस्कियाँ ले रही थी.. 

“आई माँजी” सुमन ने अंदर से आवाज लगाई | बाहर आकर सास से बोली "आपको कोई काम था ?"

"बाहर कुण आ रियो है, किसके चाय बगाणी है, ये ध्यान मैं रखूँगी ?” सुमन की सास (जमना) क्रोध से उबल पड़ी |  

दरअसल जमना की हम उम्र महिलाएं उनके घर पर आई थी "चल जा, चाय बना ।" जमना ने कहा |

सुमन अंदर ही अंदर कुढ रही थी| वह अपनी किस्मत को भी कोस रही थी | 

                          जब वह स्कूल, कॉलेज में पढाई करती थी तो सभी उसकी प्रतिभा की प्रशंसा करते थे | 

वह सोचते हुए अंदर रसोई घर में चाय बनाने लगी | सुमन अंदर चाय बना रही थी | उसकी सास अपनी सहेलियों के साथ गपशप लगा रही थी |  

जैसे ही सुमन बाहर आई चाय लेकर. उन्हीं महिलाओं में से एक ने कहा "जमना ! तेरी बहू कोई तैयारी ना कर रही के" 

जमना तपाक से बोलती है, "ये के तैयारी कर सके है, जितणी दिक्खण में भौंडी है. उतना ही इस‌के दिमाग के जंग लगा है. मैं तो सब से सुण सुण के परेशाण होगी. कितणी मोटी और काली बहू कहाँ से लाये ?" 

ये सुनकर जमना की सभी सहलियाँ ठहाका मारकर हँसने लगी. सुमन की स्थिति ऐसी हो गई मानो काटो तो खून नहीं |  

उसने अपने चेहरे के झुंझलाए हुए भाव प्रकट नहीं होने दिए. बिना कोई जवाब दिए सनसनांती हुई अंदर चली गई | 

सुमन के मन में ऐसा कुछ था.. जिससे वह अंदर ही अंदर कुढ़ रही थी अपनी कुछ अधूरी ईच्छाओं को पूरी करना चाह रही थी. जो वह विवाह से पहले पूरी नहीं कर पाई | 

ऐसे ही समय निकलता गया. सुमन आए दिन जलील होती रही.. लेकिन अब वह अंदर तक भर चुकी थी |

वह अपने विचारों के उधेड़बुन में उलझी हुई थी. तभी उसे खट-खट की आवाज सुनाई दी, वह बाहर आई. दरवाजे पर कोई था. उसने दरवाजा खोला. खुशी से चिल्ला उठी. उसकी दो सहेलियाँ खड़ी थी | 

वह गर्मजोशी से गले मिली और अंदर लेकर आई | अपनी सास से उनका परिचय करवाया. जमना ने नाक भौं सिकोडे. जमना को ऐसा कोई भी इंसान पसंद नहीं था. जो सुमन का परिचित था |

सुमन की सहेली ने कहा "अरे ! तुम इतना बदल गई? इतनी प्रतिभावान थी. तुमने आगे कोई प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी नहीं की?”

इतना सुनते ही सुमन का चेहरा उदासी से लटक गया. उसके चेहरे पर अनेकों भाव आ जा रहे थे. पर वह बोल नहीं पा रही थी | 

जमना ने फिर वही बात दोहराई जो वह सबके सामने, कहती थी " इसके किस्मत में सरकारी नौकरी ना है जैसी दिखणे में है, काली, मोटी. वैसा ही इसका दिमाग है।" 

लेकिन आज सुमन को बहुत गुस्सा आया. वह अपनी सहेलियों के सामने बेइज्जत महसूस कर रही थी. वह तमतमा उठी. लेकिन फिर भी किसी तरह अपने भावों को दबाकर अपनी सहेलियों को विदा किया. अब सुमन ने ठान लिया था "मुझे अब कुछ करना है. ये साबित करना है. सफलता सुंदरता की मोहताज नहीं होती |”  

उसने मन ही मन फैसला लिया. "मैं यूपीएससी की तैयारी करूंगी" 

अगले दिन सुबह जल्दी उठकर अपने पति को किताबों की सूची हाथ में थमा दी. पति भी आश्वर्य--चकित था. सुमन का यह निर्णय सुनकर | 

लेकिन फिर भी उसके इस निर्णय में उसकी स्वीकृति थी. जमना को इस बात की भनक तक नहीं लगने दी, किताबें ला दी गई | 

सुमन बहुत उत्साह में थी, वह पुनः अपने नए जीवन की शुरुआत कर रही थी | 

उसने अपनी तैयारी शुरू की. दिन में काम करना. रात को देर तक पढना. सुबह जल्दी उठना. उसकी दिनचर्या बन गई | इन सबके बीच जमना के ताने सुनना. लेकिन सुमन ने ठान ही लिया था. इसलिए इन बातों को पढाई में बाधा नहीं बनने दिया |  

एक दिन यूपीएससी प्री के पेपर की तारीख आ गई. अब सुमन को परीक्षा देने जाना था. 

अपनी सास को जरा सा भी अहसास नहीं करवाते हुए बोली-

"माँ जी, मुझे अपने मायके गए बहुत दिन हुए. मैं दो दिन होकर आती हूं।" 

जमना ने अनमने भाव से सिर हिला दिया. क्योंकि सुमन की अनुपस्थिति में सब काम उसे करने पड़ते । 

सुमन ने परीक्षा केंद्र पर पहुंचकर परीक्षा दी. उसका पेपर बहुत अच्छा हुआ. अब उसे विश्वास हुआ की बिना इंतजार किए मुझे मुख्य परीक्षा की तैयारी करनी चाहिए |  

उसने ऑनलाइन कोर्स भी लिया. कभी कभी कानों में ईयर फोन लगाकर भी चैप्टर सुनती और काम भी करती. इन्ही सबके बीच प्री परीक्षा का परिणाम भी आ गया. सुमन उत्तीर्ण हो गई थी. अब उसके पंखों को और हवा लग गई थी | 

 जमना कहती “के कर है? “ सारे दिन कान में लगा के सुनती रहवे है. या अब बिगडगी. पैल्यां जैसी ना रही।" 

सुमन सुनकर भी अनसुना करती. निरंतर अपनी पढाई करती रहीं. आखिर मुख्य परीक्षा का दिन भी आया. उसने बहुत कठिन मेहनत की थी. आत्मविश्वास के साथ उसने परीक्षा दी. जब तक उसने जमना को नहीं बताया. वह मुख्य परीक्षा में भी उत्तीर्ण हो गई | अब वह अपनी मंजिल से एक कदम दूर थी, साक्षात्कार की तैयारियों में व्यस्त हो गई. इसी बीच जमना फोन करके सुमन की माँ से कहती है: “थारी बेटी कुछ ना करे है,सारे दिन किसी से फोन पर बात कर है, ये इसके लखण अच्छे ना है।"  

सुमन की मां ने अच्छे से बातें की | टेंशन नहीं लेने की बात कही |  

सुमन अक्सर साक्षात्कार की समूह चर्चा में शामिल होती थी , जमना को लगता था कि पता नहीं किससे बात करती है ,

लेकिन सुमन ध्यान नहीं देती थी. बस निरंतर अपनी पढाई में लगी रहती थी,  

आखिर एक दिन साक्षात्कार भी हो गया अब तैयारी थी अंतिम परिणाम की | सोमवार को परिणाम आना था | सुमन की धड़कने बढ़ रही थी, उसकी अत्यंत कठिन मेहनत का परिणाम आना था. जमना हॉल में बैठी टेलीविजन देख रही थी. अचानक उसने स्क्रीन पर अपनी बहू का फोटो देखा | 

उसे और कुछ समझ नहीं आ रहा था, उसका दिमाग चक्कर खाने लगा, जोर-जोर से सुमन को आवाज लगाने लगी | 

" बहू ! ओ बहू! अब के गुल खिला के आयी है, ये टीवी वाले तेरी फोटू क्यूं दे रहे?”  

सुमन आश्चर्यचकित थी, उसे अपनी आँखो पर विश्वास नही हो रहा था, उसने यूपीएससी टॉप किया था | 

थोडी देर बाद. देखते ही देखते उसके घर पत्रकारों की भीड़ लग गई. मेहमान आने लगे, बधाई देने वालों का ताँताँ लग गया | जमना की सहेलियां भी आई, उन्होंने कहा "बहू हो तो ऐसी! " 

जमना बहुत शर्मिंदगी महसूस कर रही थी. सुमन ने अपनी सास के चरण स्पर्श किए और बोली "माँ जी! सफलता, सुंदरता की मोहताज नहीं होती ।" 

आज जमना की स्थिति ऐसी थी मानो काटो तो खून नहीं| सुमन, जमना को देख कर मंद मंद मुस्करा रही थी |


तारीख: 07.06.2025                                    बबिता कुमावत




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