पॉलिश वाला

थोडा आगे तक छोड़ देंगे | सुबह 10 बजे का  वक्त था। सरकारी स्कूलों का समय यही होता है। हाथ में बस्ता और मैली सी शर्ट ,टांके लगी पेंट और पैरों में हवाई चप्पल शायद कोई सरकारी स्कूल का विद्यार्थी होगा जो स्कूल के लिए लेट हो रहा है।

हां जरूर छोड़ देंगे बैठो! स्कूल जा रहे हो, नही। तो फिर कहां जा रहे हो मैंने पुंछा , वो जो आगे कचहरी वाली रोड पे जो ऑफिस है | वहां जा रहा हूँ | , वहां किस काम से जा रहे हो ? इस प्रशन के उत्तर मे उसने कहा मैं पॉलिश करता हूं वहाँ जाकर |

मैंने  कहा - कहां आफिस के बाहर

उसने कहा - नहीं आफिस के अन्दर जाकर।

मैंने फिर पुंछा कौन पॉलिश कराता है वहां, साहब लोग करा लेते है। रोज, नहीं पर कभी कोई कभी कोई करा लेता है मेरे पास काली, भूरी दोनो रंग की पॉलिश है । हां पर मैं सफेद जूतों को भी पानी से बहुत साफ कर देता हूं। मेरे जूते सफेद थे उसने ये देख लिया था। आज शुरूआत यहीं से हो जाये ये समझ कर अपना पहला ग्राहक मुझमे ही तलाशने लगा। मैंने राय देते हुए कहा कचहरी वाली रोड़ के आगे ही एक बड़ा पोस्ट ऑफिस वहां नहीं जाता क्या तू। बड़ी सहजता से उसने कहा पहले गया था पर वहां घुसने नही देते इसलिए नहीं जाता।

मैंने कहा - वैसे रहते कहाँ हो तुम और परिवार में कौन कौन है?

 उसने कहा - नेहरू नगर, कच्ची बस्ती में | चार भाई और दो बहने है और मै  सबसे छोटा हूं |

मैंने कहा - क्या,  उम्र होगी तुम्हारी?

उसने कहा -11 साल का हूं।

मैंने कहा - भाई भी काम पर जाता होगा ?

उसने कहा – हाँ सभी जाते है , आप इस तरफ जाओगे क्या ?

नही मूझे दूसरी तरफ जाना है, अच्छा तो मुझे यहीं उतार दो।

सोचा इसे सलाह दूं कि स्कूल जाया कर पर ये वास्तविकता से परे एक बेवजह की नसीहत  होगी और उसे सही भी नहीं लगेगी क्योंकि उसकी प्राथमिकता काम है और उसकी समझ अनुसार शायद सही भी है |  दिमाग के इस तर्क ने भावनाओ का  खंडन कर दिया | अक्सर दिमाग के तर्क प्रभावी हुआ करते है।

मैंने फिर कहा सुन इस रोड़ पर आगे जाकर उल्टे हाथ पर  एक बिल्डींग आती है वो देखी है तुने,  हां देखी है ना उसने तुरंत उत्तर दिया क्योकि अब उसे अपने गंतव्य पर पहुँचने की जल्दी हो रही थी | तुझे  पता है वहां बहुत सारे लोग आते है, शहर का सबसे बड़ा सरकारी कॉलेज है और वहां कोई अंदर जाने से भी नहीं रोकेगा।

उसने उत्तर दिया - ठीक है जरूर जाऊंगा ।

अरे.........अरे........अरे  सुन नाम तो बता जा तेरा बड़ी तेजी से निकल गया शायद ये प्रशन उसने सुना ही नहीं खैर विलियम शैक्सपीयर ने कहा है “नाम मे क्या रखा है कुछ भी रख लिजिए” तो फिर पॉलिश वाला ही सही।


तारीख: 14.04.2024                                    कल्पित हरित









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