अतुकांत कविता

थोड़ा ख़मोशी ओढ़े
किसी कोने में पड़ें
पढ़ रहा अख़बार
ढूँढ़ रहा है ख़बर!


मिल जाए शायद
उसे जो चाहिए
चाशनी में डूबी हुई
थोड़ा नमकीन सी
भीनी खुशबूदार
जिसे गटक कर
खुश हो ले और
काट ले अपने 
ये भयानक दिन
जो नही मिलेंगे
उसे ढूँढने से भी!


शायद कब से 
इन्हीं दिनों का 
उसे इंतज़ार था
जब आराम से
वह भी किसी
एकांत कोने में
उठाता पूरे दिन
वो एक अख़बार
और चट कर जाता
सारी की सारी ख़बर
करता खूब आराम
वो भी आराम से!

 


तारीख: 25.04.2020                                    आकिब जावेद









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