साया

सफ़र में ज़िन्दगी के यू शुमार हूँ
ख़ुद को भी कहाँ मैं तलबगार हूँ
रोक भी लूँ तो न रुक सकूँगा कैद में
मैं बेवज़ह उठती धुंध का ग़ुबार हूँ
तलाशने को तो ख़ुद की ही मैं ख़ाक हूँ
लिपटने पर न हो विषाक्त वो शाख़ हूँ
पर्वती शिखर सी जिसमे हो ग़हराइयाँ
मैं ऐसा हमनफ़स सबका यार हूँ
चाँद की हूँ तपिश सूर्य की फ़ुहार हूँ
डूबती मछलियों की अनसुनी पुकार हूँ
जो देखते हो अक्स रोशनी के बाद भी
तेरे उस अक्स का मैं शिल्पकार हूँ


तारीख: 17.02.2024                                    आलोक कुमार




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