हरसिंगार

यह है मेरा प्यारा हरसिंगार का पेड़ थोड़ा ध्यान से देखेंगे 
तो इसने पूरी सड़क पर मोती बिखेर दिए हैं रात भर में, 
खूब गमकता हैपर सुबह होते होते इसपर एक भी फूल 
नहीं बचता।

ये नजारा देख कर..
हमने ये सोचा

मैं हरसिंगार
पर मेरे फूल
मलय पवन की नरमाई भी सह ना पाते
रात भर मैं पुष्पों से सज्जित
अपने ही यौवन से जरा झुकी
जरा संकुचित
तनिक सी झिझकी
अकारण क्यों लज्जित?

जब नियति ही मेरी है हो जाना पददलित
सूरज की पहली किरण से भी पहले
अपनीे ही *पुष्पित* नियति से
दिन भर मैं कुलिश कठोर वृक्ष गंध रस पुष्पहीन
रात में मैं सजी सकुचाई सलज्जा..
क्या है नियति मेरी?
मेरी आकांक्षा वंचना मेरी?
या वंचना ही मेरा भोग्य?


तारीख: 05.06.2017                                    सौम्या मिश्रा




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