बेटी

घर, आंगन महकाती,
खुशियों के दीप जलाती है बेटी।
सपनों को सजाती,
सबका ख्याल रखती है बेटी।
हर घर की शान,
हर परिवार की आन है बेटी।
पिता का स्वाभिमान,
मां का अरमान है बेटी।
सृष्टि का सार,
जीवन का आधार है बेटी।
अपनों की प्रीत,
संस्कारों की रीत है बेटी।
धरती का श्रृंगार,
नभ का आभार है बेटी।
अरमानों की डोली,
सौभाग्य की झोली है बेटी।
फूलो की बहार,
कलियों की मुस्कान है बेटी।
तोड़ कर इसका दिल,
मत करना तुम ये भूल।


तारीख: 04.03.2024                                    रेखा पारंगी









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