सोलह श्रृंगार सी ज़िन्दगी
सदाबहार फूलों के हार सी ज़िन्दगी
नवयौवना की मीठी रस भरी
बतियो की फुहार सी ज़िन्दगी
कोयल की कूक सी पुकारती
कभी कंकडों की कर्कश
आवाज़ सी कानों से
टकराती ज़िन्दगी
ज़िन्दगी समुन्दर की तेज
लहरों की तरह
दिल की चट्टानों से
टकराती है
लौट जाती है
कभी मां के प्यार की
तरह दुलारती है
कभी बुरे वक़्त के कोड़े
की मार की तरह दुत्कारती यह ज़िन्दगी
कभी एक आशिक
सी मोहब्बत जताती
कभी एक दुश्मन सी सौ दर्द दे जाती है
यह ज़िन्दगी
ज़िन्दगी नाम
ले लेकर ऐसे पुकारती है
मुझे
कि आवाज़ मैं देती हूँ
पर अंदर से कहीं गहरे
मुझे खामोश कर जाती है
ज़िन्दगी।