कहानी


कल तक से अब तक तो,
जो थी कहानियां वही चली,
पर जो अब ये चल रही है
इससे बिलकुल अनजान हूँ मै।

इस क्षण में या उस क्षण में
कितने ही किरदार बदल गए
पर सबने जो किरदार निभाए
उन्हें देख हैरां हूँ मैं।

कुछ बातें इधर, कुछ बातें उधर
जाने कितने चर्चे बने
पर तुमने जो बातें कहीं
उन्हें सोच खोया हूँ मैं।

कितनी रातें, कितने सवेरे
जाग जाग बीते है संग में
पर घुसा अंधेरा यूं अंग-अंग में
सिमट-सिमटकर सोया हूँ मैं।

इस पल थमती, उस पल रुकती
दास्तां कुछ चली, सही
पर हमने जो ये अंत बनाया
उसे पढ़ रोया हूँ मैं।

तुम्हारी बस्ती, तुम्हारा शहर
तुम्हारी गली और तुम्हारा घर
सबके पते मुझको जुबानी,
खुद का पता भुला हूँ मैं।
 


तारीख: 15.07.2017                                    अंकित मिश्रा




रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है