जिंदगी सुबहो शाम हो रही


जिंदगी इस कदर सुबहो शाम हो रही
वक्त की जीत है यह तमाम हो रही
मुठ्ठियों में रेत सी फिसलती हैं जिंदगी
दौर-ऐ मुश्किलों से संभलती है जिंदगी
भीड़ है भी तो क्या गमे गुमनाम हो रही
मंजिलों की दौड़ से ये बेअंजाम हो रही
कोशिशें हज़ार, सुकूँ मिलता कभी कभी
शिकवा भी क्या करें गिरफ्त में है सभी
मैं परेशां हूँ ये बात हर जुबाँ आम हो रही
बेबफा है मंजिले कोशिशें बदनाम हो रही
कल को भूलें नहीं, आज ने छीनी जमीं
इत्तिफ़ाक़न नहीं सरेआम सताती है जिदगी
जिंदगी इस कदर सुबहो शाम हो रही
बस वक्त की जीत है यह तमाम हो रही


तारीख: 06.04.2020                                    नीरज सक्सेना









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