खुद तूने पत्थरों में आशियाना बना रखा है |
फिर आदमी को क्यूँ तूने आदमी बना रखा है ||
इस रात मेरे पास कुछ नहीं, कल का पता नहीं |
जिंदगी को क्यूँ मेरी तूने तमाशा बना रखा है ||
तुझसे शिकायतें करने का शौक भी न रहा |
मेरे दर्द को ही तूने अपना मज़ा बना रखा है ||
सितारों का आसमाँ से टूटना देख कर तूने |
मुझे अन्दर से तोड़ने का बहाना बना रखा है ||
बादल बरसते हैं तो मैं सहम जाता हूँ अक्सर |
आँखों को पहले ही तूने सुनामी बना रखा है ||
कल जो हर बात पर मुझसे सलाह करते थे |
उनको ही आज तूने मेरा मुर्शिद बना रखा है ||
तेरी इन चालों से अब हैरत नहीं होती है मुझे |
अपनी शतरंज का मुझे प्यादा जो बना रखा है ||
कहते हैं तेरे घर देर हो सकती है पर अँधेर नहीं |
लगता है कि देर हो गई , चिराग जो बुझा रखा है |
अकेलेपन का कोई सस्ता सा इलाज बता दे मुझे |
अपनों ने तो साथ देने के लिए, भाव बढ़ा रखा है ||
हो सके तो कागज़ की किताबें संभाल कर रखना |
किताब के हर पन्ने पर " हेमन्त" नाम लिखा रखा है ||