दर्द छलक आया

आज फिर पलकों से 
दर्द छलक आया 
जब अतीत के पन्नो को 
परत दर परत खोला 
गुजरा कल नजर आया 
कहने को यूं तो सभी अपने थे 
परंतु बहुत ही कम आंखो ने 
हमारे लिए अश्रुओ को गिराया 
फूलों में देखा , धरा में देखा 
धरा के हर जर्रे में देखा 
कड़वा है परंतु सत्य है 
चारों दिशाओं देखा सत्य ही सत्य 
जब देखा खुदगर्ज इंसा में
सिर्फ झूंठ ही झूंठ नजर आया 
प्रेम की गागर सूखी मिली 
स्वार्थ के सागर में डूबी मिली
मैं हूं सर्वोपरि, मेरा धर्म है सर्वोपरि 
सभी को कहते सुना 
बहुत ही कम इंसानो में 
इंसानियत का धर्म नजर आया 
भूख से व्याकुल गरीब मिला 
रूपया, चादर, सोना, चाँदी चढ़ाते 
कहीं पर खुशनसीब मिला 
मुझे तो सभी में भगवान् नजर आया
अफसोस मुझमें ही सिर्फ 
किसी को भगवान् नजर नहीं आया 
दंगा, लूट, बलात्कार
हर कदम पर भ्रष्टाचारी, भ्रष्टाचार मिला
ये ठीक नहीं, वो ठीक नहीं 
ऐसा होना चाहिए, वैसा होना चाहिए 
दुसरो के लिए सभी कहते मिले
परंतु स्वयं को बदलता 
बहुत ही कम इंसान नजर आया।


तारीख: 18.10.2017                                    देवेन्द्र सिंह उर्फ देव









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