संवेदन के ताल हैं सूखे
कैसी है सदी।
पैसों से रिश्ते बनते हैं
पैसा हुआ महान।
बंँधे हुए खूँटे में लगता
मुझको जैसे ज्ञान।।
कोयल के भी बोल हैं रूखे
कैसी है सदी।
हरे-हरे जज़्बात का पोषण
बंद हो गया है।
मेल-मिलाप जहांँ होना था
द्वंद हो गया है।।
लोग नहीं हैं प्रेम के भूखे
कैसी है सदी।