हठीला मन

दर्द मिला है, पर न माने, कैसा पागलपन है।
फिर से प्यार के सपने देखे,बड़ा हठीला मन है।।

सुधियों की घनघोर घटाएँ, अन्तस पर छाती हैं।
उमड़-घुमड़कर बार-बार फिर नयनों तक आती हैं।।
वो क्या जाने इन नयनों में रहता इक सावन है।
फिर से प्यार के सपने देखे, बड़ा हठीला मन है।।

वह मेरे मन की राधा थी, मैं उसका मोहन था।
मोरपंख, माखन, मुरली सा रिश्ता वह पावन था।।
कहाँ खो गई राधा, ढूँढ़े मन का वृन्दावन है।
फिर से प्यार के सपने देखे, बड़ा हठीला मन है।।

कैसे उसको हम बतलाएँ कितना प्यार किया है?
अपने जीवन का हर एक क्षण उसके लिए जिया है।।
मेरे दिल में आज भी उसके दिल की ही धड़कन है।
फिर से प्यार के सपने देखे, बड़ा हठीला मन है।।
 


तारीख: 14.06.2017                                    डॉ. लवलेश दत्त




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