ओह इंसान

चाँद में पहुँचने वाला इंसान,
आज घर पर दुबक कर बैठा है।
एक छोटे से जीव से घबरा कर ,
खुद को छुपाये बैठा है ।


मुँह पर कपड़ा बाँधे
अपनी पहचान मिटाये बैठा है।
एक दूसरे से दूरी बनाकर 
अपनो और परायो को भुलाये बैठा है।
खुले आसमाँ में साँस लेना,
पहाड़ों जंगलो में भटकना,
विशाल समुद्र में डुबकी लगाना,
सब कुछ गँवा कर बैठा है।


बिना इंसान के भी,
फूल खिल रहे है,
हिरण कर रहे है उछल कूद,
मछलियाँ कर रही है क्रीड़ाएँ
मानो सब कह रहे हो,
ओह इंसान !!
तू क्यों इतना ऐंठा है?

अभी भी वक़्त है इंसान,
समझ जा, सम्भल जा,
जो खुद के कर्मों पर लेटा है।

तू भी है सिर्फ ,मात्र ,केवल एक जीव
इन अनंत प्राणियों में
तू कोई खास नही
यही समझाने कोरोना बैठा है!!


तारीख: 12.04.2024                                    वेल मुरुगन









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है