आज क्रांति फिर लाना है

डूब रही जो शक्ति
अंधकार के घेरों में, 
फसती जा रही जो
कलि काल के फेरों में,
उसको पुनः जगा 
ज्योति से ज्वाला  
बनाना है आज
क्रांति फिर लाना है।
पथ के आवर्तों से जो
बैठ गयी है थक कर, 
कटु वचनों के निर्मम दंश
जो झेल रही घुट-घुट कर,
कर समुद्र का महामंथन
उसे अमृत पान कराना है 
आज क्रांति फिर लाना है।
जग की दुर्दशा से व्यथित,
खिन्न हो वापस लौट गयी
जो हार मान कर, प्राण
त्यागने को तत्पर, रोक 
उसे मृत्यु पथ पर, 
गांडीव की तीक्ष्ण
टंकार सुनाना है 
आज क्रांति फिर लाना है।
दिवा स्वप्न में डूबे जग को
श्मशानोन्मुख नर को 
जागृत कर, नवभारत का
स्वर्णिम स्वप्न सजाना है 
प्रति पल प्रति श्वास की
ऊर्जा से नव युग का 
अनुपम दुर्लभ ब्रह्म
कमल विकसाना है, 
आज क्रांति फिर लाना है ।


तारीख: 09.04.2024                                    मोहित त्रिपाठी









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