आशा और निराशा

अमर प्रेम की गाथा थी
न गजब प्रेम की कविता थी
वो तो मेरी आशा और निराशा थी

पल में सब कुछ देती थी
पल में सब कुछ लेती थी

पल में हमें हँसाती थी
पल में हमें रुलाती थी

पल में अपना रूप दिखाती थी
पल में अपना रूप छुपाती थी
वो तो मेरी आशा और निराशा थी 


तारीख: 29.06.2017                                                        अजित कुमार






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