अंतिम यात्रा

 

मर जाओगे तुम अगर रात में, तो घर के बाहर,
खुले आसमाँ के नीचे, एक चादर पर पड़े रहोगे,
सुबह का इंतज़ार करते हुए।
घर वाले आस-पास रहेंगे ज़रूर, ऊँघते हुए, झपकी लेते हुए,
दो-एक जोड़ी गीली आँखें तुम्हें देखती रहेंगी।

 


सुबह होगी तो आधी नींद से उठकर,
सब एक बार फिर तुम्हें देख कर रो पड़ेंगे।
फिर तैयारी होगी, कोई बाँस काटने जाएगा,
कोई कफ़न और बाकी सामान लेने।

तुम तब भी बस लेटे रहोगे।

 


कुछ दूर काँधों पर जाओगे,
फिर गाँव के बाहर वाले पीपल के नीचे
कुछ और देर के लिए लिटा दिए जाओगे,
बाकी रस्में पूरी करने और उन पड़ोसियों, रिश्तेदारों के इंतज़ार में,
जो तुम्हारे साथ घाट जाएँगे।

 


सबके आते-आते तुमने धूप में लेटे हुए,
खुले आसमाँ के नीचे फिर बिता दिए होंगे एक-दो घंटे।
फिर चार लोग तुम्हें आड़ा-तिरछा कर,
बस की छत पर बाँध देंगे।
हवा के थपेड़े खाते, धूल में सनते,
तुम बस की छत पर घाट पहुँच जाओगे, और उतार दिए जाओगे।

 


नदी किनारे, तुम फिर इंतज़ार करोगे,
सबके लकड़ी ले आने का।
फिर तुम लेट जाओगे आख़िरी बार, चिता पर,
और इंतज़ार करोगे *म राजा के साथ मोल-भाव करते
अपने परिवार वालों का,
कि आग देने की बात कितने में बनेगी।

 


वो माँगेगा ग्यारह हज़ार, और अंत में ले-दे के,
इक्कीस सौ पर तैयार होगा।

तब तक पास जलती दूसरी लाशों की सड़ी गंध,
तुम्हारे फेफड़ों में भरती रहेगी।

 


अंत में एक आख़िरी बार रो कर,
तुम्हारे मुख के समीप अग्नि आएगी।
पता नहीं उस समय तुम क्या सोचोगे, अगर सोच सको तो,
मगर इतना ही था तुम्हारा सारा जीवन,
सारी चिंता, सारी दौड़-धूप, सारी तकलीफ़।


फिर धू-धू करके पहले जलेंगे तुम्हारे कपड़े और केश,
फिर तुम्हारा अति प्रिय सुंदर चेहरा झुलस उठेगा।
एक-एक करके जल जाएँगे हाथ, पैर और सारे अंग।


धरती पर तुम कभी थे, इसके प्रमाण में,
बच जाएगी बस थोड़ी सी राख,

जो प्रवाह होगी गंगा में,
और विलीन हो जाओगे तुम सदा के लिए,
जैसे कभी थे ही नहीं।


तारीख: 02.07.2025                                    मुसाफ़िर




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