फूल थे,खुशबू थी,सारा बागबां था सामने
गुजरने को खूबसूरत इक कारवां था सामने ।।
नजारों में रंग थे,रंगीन कुछ ख्वाब भी थे,
बहकाने को हर लम्हा मेहरबां था सामने ।।
हर इक हिस्से में मौजूद ज़िन्दगी दिख रही थी,
बस जो दिख रहा था वो कहाँ था सामने ।।
आया जिस पर दिल वो कहीं बैठा था छुपकर,
यूँ कि चाँद को छोड़कर पूरा आसमाँ था सामने ।।
मर्ज-ए-इश्क़ का ह़कीम ही मर गया था कहीं,
कहने को तो सारा का सारा जहां था सामने ।।