बहर की पाबंदियों

वर्षो से बहर की पाबंदियों में क़ैद है गज़ल
वरना हक़ीक़त से    बेहद लबरेज़ है गज़ल ।
उस्तदों ने उलझा रक्खा है दुनिया-ए-इश्क़ में
जबकी हक़ बयानी में बेहद मुस्तैद है गज़ल ।
अक़्सर अहमियत इसकी हुस्नोइश्क़ में दिया
अगरचे इन्क़लाबी ज़मीं पे ज़र्खेज़ है गज़ल ।
जिसको लगी लत इसकी वो तो काम से गया
अब कैसे कहें यारों कितनी पुरकैफ़ है गज़ल ।
ज़ुर्रत की कैसे अजय तुमने ये सब कहने की
तुम्हारे मुह से तो सुनना भी अबैध है गज़ल ।

 


तारीख: 27.02.2024                                    अजय प्रसाद









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