वो तेरी तरसी निगाहों का
हर बार का उलाहना ।।
और धक् से मेरी धड़कन का
यूँ तेरे आने से रुक जाना ।।
पास आने की तेरी शिद्दत
और मेरा तुझे यूँ झूठ-मूठ सताना ।
मेरा वही मान कर भी
न मानने का रवैया मनमाना ।।
तब तेवर में भर कर गुस्सा
यूँ तेरा वहीं रुक जाना ।।
मना लूं तुम्हे, लगा कर गले
पर मेरा तुझे यूँ झूठा खपाना ।।
नयनों की कोर से हुई शरारत
और सारे राज़ खोल जाना ।।
पर तुझ मासूम का एक और पत्र प्रार्थना का
मुझे निवेदित कर जाना ।।
मुस्काना, लजाना, मेरा आगे बढ़ कर
फिर रुक जाना ।।
पर तेरे छूने की अदब का
मुझ पर बादल बन छा जाना ।।
और मेरे मोम के किले सी ज़िद का
ढह जाना - ढह जाना ।।।।