चाहे इश्क क़रो या नफ़रत करो..
पर मोहब्बत बदनाम न करो!
चाहे इज़हार करो या इनकार करो..
पर मोहब्बत दाग़दार न करो!
चाहे दूर रहो या पास रहो..
पर मोहब्बत बेज़ार न करो!
चाहे रंज रखो या गिला करो..
पर मोहब्बत शर्मसार न करो!
क्या रखा है मसला-ए-ज़िन्दगी में..
बस मोहब्बत के आबशार में हमाम करो!