आज है रोने को जी करता

उम्र है मेरी परेशां मुझसे, फिर भी
क्यों हर रोज कमबख्त जीने को जी करता

जो आस है तुम्हारे सीने में
उस आस में मेरी दुनिया है

और इस बेरंगी दुनिया में
इक रोज गुजरने को जी करता।

मैं डूब रहा इन गीतों में
इन बोल तरसते ग़ज़लों में

और ये प्यास तुम्हारी लफ़्ज़ों का
क्यों होठों से पिने को जी करता।

क्या दर्द छुपाउंगा मै
क्या कुछ छुपा पाओगे तुम

जो कतरा रुका है गालों पर
उसे जीभ से चखने को जी करता।

ये वक़्त गुज़ारे जो हमने
जो जो दुख बाटे थे हमने

और जो कुछ अधूरा छुट गया
कुछ मेरा, कुछ तुम्हारा

आलिंगन कर सब बताने को तुम्हे
फ़फ़क फ़फ़क कर है रोने को जी करता।


तारीख: 06.06.2017                                    अंकित मिश्रा




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