दिन का दफ़्तर

प्राची में निकला सूरज का गोला,
किरनों ने भी अपना दफ़्तर खोला।
भँवरों ने फूलों से खूब नैन लड़ाए,
पंछी चहके दिन ने,अपना बस्ता खोला।

हंसी-खुशी सब निकल पड़े बस्ते से,
बैठ अटारी की मुँडेर पे बंदर राह तके।
बजरंगी के मंदिर में,भक्तन से प्रीत करे,
खींचें अम्माँ का अंचरा,बूँदी से ढीठ करे।

बाबा की भोर शिवाले में खूब नहाई,
मंत्र-शंख बजाकर,धूनी में चित्त रमाई।
बाबा निकल पड़े रुके,चौराहे के नुक्कड़ पे-
चाय पीकर कुल्हड़ में जलेबियाँ बँटवाईं।

चौराहे पर वर्दी वाले रौब दिखायें,
लाल-हरी बत्ती का पाठ पढ़ायें।
बाँध गुलाबी फ़ीता,बिटिया स्कूल चलीं,
बच्चे जुटे खेलों में कैंचिया साइकिल चलायें।

मास्टरनी जी ने चश्मा,टिकाया नाक पे,
आँख तरेर हुकुम दिया,बच्चों पोथी बांचों।
मन में मची कुलबुली,एेसी-वैसी निगाह तकें
शरारत सूझी बच्चे बोले,मैडम पहले कॉपी
जाँचो।

चाची भाभी ने दिन,खूब मलमलकर धोया,
लटकाया अलगनी पे,चौके में दही बिलोया।
बहुरिया ने फेंटा दिन को,कसकर बेसन के घोल में,
चूल्हे चढ़ी कड़हइया,दिन मटका खूब तेल में।

चाचा ने दिन धरा तंबाकू सा हथेली में,
चाची गरजीं सही नहीं,जाओ दोस्त की हवेली में।
चाचा ने पहना कुर्ता,मूँछों पे कसके ताव दिया।
निकल पड़े प्रसन्नवदन,हवेली की तरफ कूच किया।

दिन ने डुगडुगी बजा,दुपहरी को आन पठाया।
दुपहरी चली आदेश सुन,विद्यालय में छुट्टी का घंटा बजवाया।
उधर कैंटीन में बाबूजी ने,डिब्बा खाने का ज्यों खोला,
दोस्त लगे झाँकने पूछे,हमारी भाभी ने क्या भिजवाया।

एक-एक कर दिन ने,सब कामों को निपटाया,
बरगद की छंइया तले,लेटकर कुछ सुस्ताया।
बजा अलार्म संझा का,चाय पी सूरज पच्छिम में ढल आया,
बंद फ़ाइलें दफ़्तर की कर,दिन ने बच्चों को चंदा मामा दिखलाया।


तारीख: 12.04.2024                                    वंदना मोहन दुबे









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