फिर सोकर उठना नहीं

तुम उठकर सोते हो, और सो कर उठ जाते हो 
बस इस उठने-सोने के क्रम से घबराते हो?

सूरज ओझल होगा, पर रौशनी फिर नज़र आएगी
मसला तब होगा जब रातों में भी नींद नहीं आएगी । 

जब उठकर देखोगे देखोगे सच और वह सच रात में सोने न देगा,
और सपनो की कल्पना  ही कर मन आहें भरेगा । 

सच-सपना-सच की आँख मिचोली का खेल फिर तब ही ख़त्म होगा ,
जब सपने को सच करने का सपना दम भरेगा । 

रातों में नींद न आने का मसला भी खुद से दूर होता पाओगे,
जब उठ कर सोने के बाद फिर उठना नहीं, जागना सीख जाओगे । 


तारीख: 20.06.2017                                    शाम्भवी झा









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