गर रिश्तों का संसार ना होता

 

किसके संग हंसते , किसके संग रोते, 
यहां हंसना और रोना दुश्वार ही होता
यह मनमोहक धरती सूनी सी लगती, 
गर यहां पर रिश्तों का संसार न होता।

हम किसे पुकारते मां और बाबूजी, 
फिर जग में कोई तारणहार न होता
और दादा दादी, चाचा चाची के बिन, 
बचपन में खेल कूद उपहार न होता।

नहीं होता भाई बहन का प्यारा बंधन, 
कोई तीज त्योहार खुशगवार न होता
नहीं होती फिर कोई प्रियतमा तुम्हारी, 
और दिल में तुम्हारे कोई प्यार न होता।

कहां मिलते दोस्त भाई से प्यारे तुम्हें, 
फिर जीवन में कोई दिलदार न होता
अभी जिसके नाम से धड़के है दिल, 
फिर उस महबूबा से इकरार न होता।

बन जाता फिर मानव भी पशु समान, 
रहता भटकता, कोई घर बार न होता
यह मनमोहक धरती सूनी सी लगती, 
गर यहां पर रिश्तों का संसार न होता ।


तारीख: 06.04.2020                                    देवकरण









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