किसके संग हंसते , किसके संग रोते,
यहां हंसना और रोना दुश्वार ही होता
यह मनमोहक धरती सूनी सी लगती,
गर यहां पर रिश्तों का संसार न होता।
हम किसे पुकारते मां और बाबूजी,
फिर जग में कोई तारणहार न होता
और दादा दादी, चाचा चाची के बिन,
बचपन में खेल कूद उपहार न होता।
नहीं होता भाई बहन का प्यारा बंधन,
कोई तीज त्योहार खुशगवार न होता
नहीं होती फिर कोई प्रियतमा तुम्हारी,
और दिल में तुम्हारे कोई प्यार न होता।
कहां मिलते दोस्त भाई से प्यारे तुम्हें,
फिर जीवन में कोई दिलदार न होता
अभी जिसके नाम से धड़के है दिल,
फिर उस महबूबा से इकरार न होता।
बन जाता फिर मानव भी पशु समान,
रहता भटकता, कोई घर बार न होता
यह मनमोहक धरती सूनी सी लगती,
गर यहां पर रिश्तों का संसार न होता ।