इस हम-तुम के खेल में

के जिहाद तुमने भी किया 
और जिहाद हमने भी किया...
के तुम्हारी वतनपरस्ती 
और हमारी मौकापरस्ती 
के सदियों से दिए जाते रहे हैं हवाले...

पर ऐसी क्या ज़िद 
और क्या ही ऐसा बचपना,
के ना तुम कभी मौकापरस्त हो सको,
और ना हमें वतनपरस्ती आ पाये...
ना तुमने कभी ख़ुद को ग़लत समझा,
ना हमने कभी ख़ुद को सही समझाना चाहा...

फिर ये क्या है,जो जिस्मों से खदेड़ देता है जान
तुम्हारी भी-हमारी भी...
जो ना भगाए भागती है,
ना मिटाये मिटना चाहती है,
ये वो ज़िद है 
तुम्हारी भी-हमारी भी...

कभी तुम हमें मार डालते हो 
कभी हमें मरना पड़ता है |
जब तुम ये कह कर मारते हो
कि हमने अपने घर की चारदीवारी में गौमांस खा लिया,
तब हम चुप रहते हैं...

जब तुम ये कह कर मारते हो 
कि हमने तुम्हारे भगवान को गाली दी 
तब हम चुप रहते हैं...

कभी तुम हिन्दू बनकर मारते हो,
कभी तुम मुसलमान बन कर मारते हो
पर जब तुम हैवान बनकर मारते हो,
तब हम चुप रहते हैं...

तुम हमें दिन में मारते हो,
तुम हमें रातों में मारते हो
पर जब तुम हमें सरेआम मारते हो,
तब हम चुप रहते हैं...

कभी करते हो सर कलम हमारा,
कभी करके लहूलुहान मारते हो
पर जब हमें मारने के बाद उठाते हो तुम गीता कोरान,
तब हम चुप रहते हैं...

ना तुम हमें मारना बंद करते हो,
ना हम तुम्हें रुकने को कहते हैं 
पर जब मरने के बाद हमें और मारते हो,
तब हम चुप रहते हैं...

तुम कहते हो हम हिन्दुस्तानी नहीं हैं,
हम कहते हैं कि हम पाकिस्तानी भी तो नहीं हैं
ये सुनकर जब तुम हमें थोड़ा और मारते हो,
तब हम चुप रहते हैं...

तुमने ख़ुद को वह बनाया जो तुम हो,
तुमने हमको वह बनाया जो तुम सोचते थे हम हैं
पर जब यही बात हमारे लबों से रिस कर तुम्हारा झंडा  खून से रंग देती है,
तब हम बोल पड़ते हैं...

और जब हम बोल पड़ते हैं
तो तुम चीखते हो,
तुम इतना ज़ोर से चीखते हो,
कि तुम्हारी चीखें ही तुम्हें बहरा कर देती हैं...
और जब तुम अपने साथ ये करते हो
तब हम हँसते हैं...

और जब हम हँसते हैं,
तुम रोते हो... 
और तुम्हें रोता देख कर,
हमें फिर से हंसी आ जाती है...

हम दोनों पागल हो गए हैं
तुम्हारे इस मरने मारने के खेल में,
हमको यह पता है
पर जब तुम ये स्वीकारने से कतराते हो,
तब हम हँसते हैं... 

हम इसलिए हँसते हैं कि तुम मर रहे हो,
हम इसलिए भी हँसते हैं कि हमें मारा जा चुका है...
हम इसलिए हँसते हैं कि तुम हमें देख नहीं सकते,
हम इसलिए भी हँसते हैं कि तुम हमें दिखाई देते हो...
हम इसलिए हँस रहे हैं कि तुम अब एक पागल इन्सान हो,
हम इसलिए भी हँस रहे हैं कि हम तब भी एक पागल इन्सान थे...

तुम जीते जी तुम जैसे रहे
मरते वक्त हम जैसे हो गए हो,
हम जिए भी हम जैसे होकर
मरे भी हम जैसे रहकर...
हम बस इसी बात पर,
वक्त बेवक़्त हँस दिया करते हैं... 


तारीख: 10.06.2017                                    राहुल झा









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