जब होनी नहीं कबूल तो दुआ क्या करूँ हैं खड़े मेरे खिलाफ गर खुदा , क्या करूँ । पहले जैसी वो रगबत भी नहीं रही यारों खुश तो दूर,रहतें नहीं हैं खफ़ा क्या करूँ ।
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