कई सालों में एक साल आता है

 

कई सालों में एक साल आता है

हम उसको मामूली समझ बैठते है,

मज़ाक बना रखते है,

लेकिन वो गंभीर होता है, 

 

वो चुपचाप दबे पैरों से

लगातार चलते रहता है,

हमको हसता है, ख्वाब दिखता है 

गिराता है, उठाता है।

 

पर चाहता क्या है,

इसकी भनक तक

नहीं लगने देता।

 

फिर एक दिन जाते जाते,

जब वो सबसे ज्यादा चंचल होता है,

वो हमसे हमारा सुकून,

उड़ा ले जाता है।

 

वैसे ही जैसे,

तेज़ आँधी, बरीश की बूँदो को।

और हम लाचार है,

हसने को, जब वो हँसता है।

रोने को, जब वो गिरता है।

 

और चुप चाप,

बिना जताए,

बुत की तरह,

सहन करने को,

जब वो अपना इनाम समझ कर,

हमसे हमारा कोई माँग लेता है ।

कई सालों में एक साल आता है

जिसे हम मामूली समझ बैठते है।


तारीख: 06.04.2020                                    गौरव









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