दुनिया के चेहरे हैं हज़ार, एक चेहरे पे बसर
ख़ुद का अपना चेहरा क्या है, ये कैसे बताये कोई।
इस अजनबी दुनिया में, कोई तो जानता है मुझे
मैं उसी का टूटा टुकड़ा हूं, यक़ीन कैसे दिलाये कोई।
चंद सहफ़ों पे लिखी रिवायत ने, तय की हैं बंदिशें
रूह की किताब में क्या दर्ज है, ये कैसे दिखाए कोई।
नहीं था कभी यक़ीन कि, राब्ता-ए-रूह भी होता है
जां दिए तो जां मिले, बिन जां दिए कैसे जान पाए कोई।
एक अहसास तक हो ग़र, तो देनी हैं माज़ी की मुहरें यहां
ऐसे ज़माने में दिल की बात, भला कैसे बताये कोई।
यह मंज़र ख़्वाब है या हक़ीक़त, किस्सा या कहानी
जब अल्फ़ाज़ छिन जाएं तो कहना, कैसे सुनाए कोई।
होंठ सिल के कहते हो, कि लफ़्ज़ आज़ाद हैं तेरे
हर बात सिसकी में नहीं कहते, ये कैसे समझाए कोई।