जब कभी समाज से विरक्त होकर,
खुद की संगत में रहता है,
कवि लिखता है ।
भूत कर्मों को याद करके,
जब-जब भीतर से जलता है,
कवि लिखता है ।
वीर-वीरांगनाओं की बातें सुनकर,
जब-जब शेरदिल बनता है,
कवि लिखता है ।
जब कभी अन्याय को देखकर,
उसका अंतर विद्रोह करता है,
कवि लिखता है ।
जब कभी प्रेयसी के आवागमन पर,
प्रफुल्लित-व्यथित होता है,
कवि लिखता है ।
प्रकृति की सुन्दरता देखकर,
जब ध्यान एकत्रित करता है,
कवि लिखता है ।
जब कभी भक्ति में डूबकर,
अपने आराध्य को याद करता है,
कवि लिखता है ।