खयाल कुछ यूं है

मेरा खुद के बारे में खयाल कुछ यूं है।
कि भीतर सुनामी है ,बाहर सुकूं है ।

जमाने में आए कुछ ही दिन हुए हैं,
अभी पूरी करनी बहुत आरजू है।

फसादों के अध्याय लिख कर करें क्या,
कल की कथा में न मैं हूं , न तू है।

कहा जिसने भी मुफलिसी में हमें 'न',
वो दुश्मन नहीं है, हमारे गुरु हैं ।

यहां हो रहा दूध का कर्ज चुकता ,
ये माटी सना आज किसका लहू है।

वहां मजहबी विश्वविद्यालयों में ,
लगी दांव पर देश की आबरू है
 
पड़ोसी की खुशियों पे बांटी मिठाई,
 मगर आ रही उससे जलने की बू है ।

शोषण हुआ था तो क्या चाहते हो,
करोगे क्या अब वंशजों का भी खूं है।

जो अपने पराए का अंतर है सब में ,
यही असलियत है न पूछो कि क्यूं है।


तारीख: 09.04.2024                                    साक्षी शुक्ला









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