मेरा खुद के बारे में खयाल कुछ यूं है।
कि भीतर सुनामी है ,बाहर सुकूं है ।
जमाने में आए कुछ ही दिन हुए हैं,
अभी पूरी करनी बहुत आरजू है।
फसादों के अध्याय लिख कर करें क्या,
कल की कथा में न मैं हूं , न तू है।
कहा जिसने भी मुफलिसी में हमें 'न',
वो दुश्मन नहीं है, हमारे गुरु हैं ।
यहां हो रहा दूध का कर्ज चुकता ,
ये माटी सना आज किसका लहू है।
वहां मजहबी विश्वविद्यालयों में ,
लगी दांव पर देश की आबरू है
पड़ोसी की खुशियों पे बांटी मिठाई,
मगर आ रही उससे जलने की बू है ।
शोषण हुआ था तो क्या चाहते हो,
करोगे क्या अब वंशजों का भी खूं है।
जो अपने पराए का अंतर है सब में ,
यही असलियत है न पूछो कि क्यूं है।