है कठिन नर की समझना चाल अब
जानवर - सा आदमी का हाल अब,
जिस दया का स्रोत था निर्मल ह्रदय
उस ह्रदय का कर गया व्यापार है।
क्रूरता की तू हदों के पार है।
कुटिल चेहरे पर मुखौटा है पड़ा
चीर हरने के लिए दुर्जन खड़ा,
विष उगलता हर कदम उन्मत्त हो
व्याल- ही- सा कर रहा फुफकार है।
क्रूरता की तू हदों के पार है।
रक्त अविरत बह रहा रुकता नहीं
अश्रु पीड़ित का सहज सुखता नहीं,
मुक्त है हैवानियत, निर्मम अनय
पंगु है इंसाफ, नय की हार है।
क्रूरता की तू हदों के पार है।