मेरे बंधन


प्यार प्यार से बाँधा मुझको 
पैर पैर से बांधा मुझको|
हो सकते थे ये भी सबल 
नजाकत से नापा मुझको| 


यूँ बांधा की चल ना सकूँ 
चुगली करें जो चल भी दूँ| 
डोरी बाँधी रिश्तों की 
बेडी पहना दी गहनों की|


मुझको भाये मेरे बंधन 
कैद से अनजान रहा मन| 
सदियाँ बीती इस बंधन में 
नील पड गये अंतर्मन में| 


खोल दो बंधन पग ये चले 
अम्बर को कर लें कदमों तले| 
पीड़ा से मुक्ति जो मिले 
श्रृष्टि सदियों तक ये चले |
 


तारीख: 20.10.2017                                    सरिता पन्थी









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