माँ का घर

वो माँ का घर ही है 
जहां बेटी राजकुमारी होती है
बे रोक टोक
बिना सवाल जवाब
जी भर जीती है
बेफ़िक्र
और कितने दिन 
कितने साल गुज़र जाते 
हंसते खेलते
प्यार और दुलार में 
बड़ी होने पर 
हर त्योहार
हर जन्मदिन में
घर के कामों से घिरी 
बेटी याद करती है
माँ का घर 
कि माँ के घर होती 
तो कितनी ख़ातिरदारी होती 
तरह तरह के व्यंजन
माँ कितने नख़रे उठाती
वो भी मुस्कुराते हुए
और माँ अभी भी 
बेटी के हर जन्मदिन में 
पकवान बनाती
बेटी के मनपसंद
और सबको खिलाती
चाहे बचपन हो 
या बेटी का बुढ़ापा
एक माँ का घर ही है
जहां बेटी का मन बसता है
जहां वो सचमुच जीवनभर 
लक्ष्मी का रूप होती है
 


तारीख: 14.04.2024                                    पूर्वा









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