मैं उतनी ही

जो मुझसे थोड़ा सा अपनापन 
अक्षत सा छिड़का जाता हैं न,
बस उतना ही मेरा अपना होता है!

तुम चाहो पूरा रख लो,
चाहो तो दो दाने मुझको भी देदो।

वक्त की अंगीठी में राख होने पर,
जो गिट्टी सा सपना बचता है न ,
बस उतना ही मेरा अपना होता है।

तुम चाहो तो पूरा ले लो,
चाहो तो कुछ टुकड़े मुझको भी देदो।

तृण पर ओंस का मिलना 
धूप संग जो पल भर होता है न,
बस उतना ही मेरा अपना होता है।

तुम चाहो तो पूरा पल ले लो,
चाहो तो निमिष भर मुझको भी देदो।

मैं उतनी ही जितना ले पाओ,
मैं उतनी ही जितना पा पाओ।


तारीख: 01.03.2024                                    भावना कुकरेती









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