भीड़ में खो ही जाने का अब फिर से मन करता है,
तुझे ही ढूंढने का अब फिर से मन करता है।
कुछ आहट सी हुई है फिर आज अहले सुबह,
तुझे अब तालाशने का फिर से मन करता है।।
धड़कनों की आवाज़ अब फिर से ही खलल लगती है,
बटोर लूं तेरे कतरों को अब फिर से मन करता है।
तुझ सा ही मेरा साथी था, हंसाता था रुलाता था,
चलूं हाथ धर किनारों पे, अब फिर से मन करता है।
बेखयालियों से कह दो ना, आ जाएं अब मझधार में,
तेरे साथ नौका खेने का अब फिर से मन करता है।
ठिठुरता चांदनी चादर में मैं, हैं हथेलियां सुनी पड़ी,
जकड़ लो आ भी जाओ ना, सुनो अब फिर से मन करता है।
सस्ती ख्वाहिशें नहीं मेरी, कुछ महंगा ईनाम कर दो ना,
एक कतरा मोहब्बत ही मेरे भी नाम कर दो ना।
क्यूं बांध रखा है खुद को, बेपरवाहीयों की डोर से,
मेरी तन्हाइयों के घुलने का, अब फिर से मन करता है।।
चले आओ आहिस्ता से, मिलो रूबरू कुछ इस कदर,
की नदियों का किनारे से, मिलने को मन करता है।।