मिट्टी हैं हम, ढलते चले गए
कितनी आयीं मुश्किलें, संभलते चले गये।
जिंदगी के रंग बदलते चले गये,
मिट्टी है हम, हम ढलते चले गये।
धुप भरे दिन, अँधेरी रातें चली गयीं
मुश्किले हमे जीना सिखाती चली गयीं।
हस के गुजरे हर दौर से,
गम को यूँही हारते चले गए।
खड़ी हैं खुशियाँ बाहं पसारे,
खुद को ये आस बंधाते चले गये।
वक़्त के सांचे खुद बनाये,
और खुद को ढलना सिखाते चले गये।
मिट्टी हैं हम, हम ढलते चले गये।