ना हिन्दू मरा, ना ही मुस्लमान मरा

ना हिन्दू मरा, ना ही मुस्लमान मरा ।
दंगा में कोई मरा तो सिर्फ इन्सान मरा।।
ना हिन्दू मरा, ना मुस्लमान मरा ।
दंगा में कोई मरा तो सिर्फ इमान मरा।।

दंगाईयों की जात कैसे निर्धारित करें ?
इंसानियत की मौत को, कैसे कोई साबित करे ?
जलाने वाले तो जला गये, सबका आशियाना। 
पर जलाने वाले की जमात को, कैसे कोई साबित करे ? 

कोई अल्लाह के नाम पे, तो कोई भगवान के नाम पे ?
मारा भी कोई किसी को तो कैसे भला, उस राम के नाम पे ?
सोचता हूँ कहाँ जा रही है अपनी इन्सानियत !
कैसे भला एक इन्सान, एक इन्सान को मार देता है ?
वो भी धर्म और जमात के नाम पे।

आतंकी और दंगाईयों की कोई जात नही होती।
इनके दिल में किसी के भी लिये ज़ज्बात नही होती।
कौन समझाए इन नासमझो को की इस जहाँ में,
इन्सान होने से बड़ कर और कोई बात नही होती।
इंसानियन से बड़ा धर्म और जात नही होती।।


तारीख: 12.04.2020                                    राकेश कुमार साह









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