नाक की पगड़ी

कई सदियों से नाक और सर में

यह तकरार थी तगड़ी,

कहती थी नाक जब मुझ से हैं इज़्ज़त,

तो फिर सिर के पास ही क्यों पगड़ी।

नाक का कहना था,

की सभी मुहावरों में हैं मेरे फसाना,

चाहे वो नाक कटना हो, नाक नीची होना,

या हो फिर नाकों चने चबाना।

क्यों फिर सर को ही हैं केवल ,

पगड़ी और टोपी का अधिकार,

जबकि इंसान की इज़्ज़त का,

मुझ से सीधा सरोकार।

कहा विधाता ने नक्कू जी,

दिन तेरा भी एकदिन आएगा,

सर की पगड़ी भूल के इंसा,

बस तुझ को ही ढकता जाएगा ।

फला विधाता का वरदान,

देखो नाक की बदली शान,

अब नाक की टोपी सर्वोपरि हैं,

बिन इसके खतरे में जान।

इस युग में नाक तू सबसे ऊपर,

तुझ से जीवन के आयाम,

भांति भांति के आवरण (मास्क) तेरे,

सुबह शाम के प्राणायाम।

इस पगड़ी टोपी के झंझट में,

हुआ हम सब का काम तमाम,

अब नाक बचाने को हैं केवल,

नाक ढके घूमे इंसान


 


तारीख: 04.03.2024                                    दिनेश पालिवाल









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