सुई

दिन बदल गये
जीवन नहीं बदला
आज भी वही सुई है
जो कल थी
पर आज उसकी महत्ता बदल गई
आज घर के सिले
कपड़े कौन पहनता है
आधुनिक सभ्य लोग
अब एक दो रुपये की
सुई को कहां पूछते हैं
नये परिधानों में
गुम गयी सुई
पर सुई के बिना
आज भी हम अधूरे हैं
सब जानते हैं
पर समझते नहीं
सुई की महत्ता
वो आज भी कुछ
गरीबों की दर्जियों की
कारखानों के कारीगरों की
रोजी रोटी है
पर सुई की नौक का ही
सबको पता है
कोई नहीं जानता
कि सुई कपड़े को
बनाती है
पहनने लायक
वरना कपड़ा मात्र कपड़ा है
बिछोना है
सुई आज भी सुई हैं
पूर्ववत


तारीख: 09.09.2019                                                        मनोज शर्मा






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